प्रमोद शाह जी की महत्वपूर्ण विवेचना ::::
भारत के स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव जिनकी 21 मई 1991 को तमिलनाडु में एक राजनीतिक चुनाव प्रचार सभा के दौरान आत्मघाती बम धमाके से विभत्स हत्या की गई थी . परखच्चे उडे़ शव में “लोटो” के पहने जूते से उन की शिनाख्त की गई थी.. आज तक की गई राजनीतिक हत्याओं में यह सर्वाधिक विभत्स हत्या है .
मैं तब नौकरी में आ चुका था, नौकरी के कारणों से ही कोई 6 माह पूर्व लगातार दो बार उनके नजदीकी सुरक्षा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ, उनकी दो बातों से मैं बहुत अचंभित था । एक उनका रंग दूसरी उनकी आवाज की मिठास और विनम्रता . आज तक भी विनम्रता और मिठास उन जैसी नहीं पाई . इस कारण इस हत्या से मै व्यक्तिगत रूप से व्यथित भी था .
आंतरिक सुरक्षा विषय में रुचि , और राजनीतिक हत्याओं का किसी राष्ट्र की राजनीति और समाज गहरा प्रभाव पड़ता है और अपूरणीय क्षति होतीमिस्र ।
आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से किसी भी राष्ट्र के लिए अपने राष्ट्र नायक और नेताओं को ना बचा पाना सबसे बड़ी विफलता है . इस विफलता के दाग को कम करने के लिए दुनिया के हर राजनीतिक हत्या के अपराधी आनन-फानन में पकड़े जाते हैं और उनका खुलासा पुलिस के कुछ सनसनीखेज अपराधों के खुलासे की तरह होता है। इस जल्दबाजी में हत्याओ के पिछे की अंतरराष्ट्रीय साजिश अनसुलझी रह जाती है .
राजीव गांधी इस देश के न केवल सबसे युवा प्रधानमंत्री थे ।बल्कि उनके वास्तविक सक्रिय प्रधानमंत्री काल जनवरी 1985 से अप्रैल 1987 के मध्य बहुत ही अल्पावधि में ही इस देश की अर्थव्यवस्था तकलीक और राजनीतिक इतिहास को बदलने के बहुत बडे फैसले लिएए गए , पार्टी के अंदर विरोध के बाद भी उन्होंने कंप्यूटरीकरण और आईटी को बगैर विलम्ब अपनाया अपने मित्र सैम पित्रोदा को व्यक्तिगत आधार पर अमेरिका से भारत लाए ,परिणाम स्वरूप आज भी अमेरिका में भारतीय इंजीनियर आम अमेरिकी नागरिक से डेढ़ गुना कमाते हैं . असम पंजाब नागालैंड जैसे आंतरिक शांति की बहाली करने वाले समझौते भी उनके नाम हैं . ग्राम स्वराज की दिशा में 73 वा 74 वा संविधान संशोधन का ऐतिहासिक ड्राफ्ट जिस पर कि उसके बाद काम नहीं हुआ . अपनी पार्टी के 100 साला समारोह में 85% भ्रष्टाचार की बात को स्वीकार कर लेना भी उनके अद्भुत साहसी चरित्र को दर्शाता है . बोफोर्स का जिन्न भारतीय राजनीति में पैदा किया गया उसके परिणाम अब समझ में आते हैं । कारगिल युद्ध की कामयाबी ने बोफोर्स की गुणवत्ता साबित कर ही दी है .
एक बार सत्ता खो जाने के बाद राजीव गांधी राजनीति और उसके षड यंत्रों के साथ भारतीय समाज को भी बेहतर से समझ रहे थे . लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थिर नेतृत्व का उभरना भी अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी को गंवारा ना था . लिट्टे के बिखरे अंतर्राष्ट्रीय तारों की विवेचना भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण हो ना पाई.. राजीव गांधी की हत्या के बाद भारत में लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा इस अस्थिरता का लाभ विश्व बैंक और आईएमएफ ने उठाया ।
विश्व की महत्वपूर्ण राजनीतिक हत्याओं पर अगर हम गौर करें ,तब भी हम यह पाते हैं कि यह हत्याएं राजनीतिक उद्देश्य से की गई जिनका की उन राष्ट्रों के निर्माण और विकास की गति में बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा ।
भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक हत्या 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या थी जिसका भारत के समाज में बहुत दूरगामी असर हुआ .
31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की राजनीतिक हत्या के परिणाम स्वरूप ही राजीव गांधी का भारतीय राजनीति में उदय हुआ और उनका भी अंत हत्या से हुआ यह भारत के लिए बहुत ही चिंताजनक दोहरा आघात और अपमान का विषय है ।
राष्ट्र के रूप में सर्वाधिक राजनीतिक हत्याएं अमेरिकी राष्ट्रख अध्यक्षों की हुई, यह भी सच है अमेरिका के राष्ट्रपति की सुरक्षा की तकनीकी और खर्च आज दुनिया में इसी कारण सबसे अधिक है।
. सबसे पहले 14 अप्रैल 18 65 को फादर ऑफ अमेरिका अब्राहम लिंकन की एक प्रार्थना सभा में हत्या कर दी गई लोकतंत्र को झटका देने की एक कोशिश थी.
2 2 नवंबर 1968 को राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या कर दी गई, कारणों में अश्वेत ओं को राजनीतिक बराबरी भी माना गया और उसके कुछ वर्षोँ बाद अमेरिका के गांधी मार्टिन लूथर किंग की 4 अप्रैल 1968 को हत्या कर दी गई ।
वर्ष 1981 में मिस्र के राष्ट्रपतिअनवर सादात की हत्या के बाद विश्व राजनीतिक मंच से मिस अब गायब हो चुका है इसके पीछे सीधे तौर पर इजरायल का हाथ और सीआईए की शह थी .
पाकिस्तान में 16 अक्टूबर 1951 को तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान और 27 दिसंबर 2007 को बेनजीर भुट्टो की हत्या भी साफ तौर पर राजनीतिक कारणों से की गई उसके बाद पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी पराभव की ओर चल पड़ी और इमरान खान की तहरीक ए इंसाफ की कामयाबी उसके बाद ही संभव हुई.
वर्ष 1968 में जब जनसंघ 35 सदस्यों के संसदीय दल के साथ मजबूत स्थिति में था. वहां राजनीतिक विचारधाराओं का संघर्ष चल रहा था ।तब 10 फरवरी 1968 को अचानक लखनऊ से दीनदयाल उपाध्याय का पटना के लिए चले जाना, मुगलसराय स्टेशन पर उनकी लाश का मिलना तफ्तीश में दो अनजान व्यक्ति लालता और सफाई कर्मी भरत पर तफ्तीश का रुक जाना जिनका की दीनदयाल उपाध्याय से जीते जी कभी संपर्क ही नहीं था एक गहरी राजनीतिक साजिश को दर्शाता है ।
किसी भी राष्ट्र नायक अथवा राजनीतिक दल के नेता का इस तरह संयंत्र में मारा जाना न केवल उनके व्यक्तिगत हानी है बल्कि इसका उस राष्ट्र और समाज पर बहुत दूरगामी प्रभाव पड़ता है. तमाम सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे इंतजाम करने ही चाहिए जिससे राजनीतिक हत्याएं और अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र कामयाब ना हो ..विनम्र श्रद्धांजली 💐💐


