उत्तराखंड के DG(L&O) अशोक कुमार के अपने 20 सालों के अनुभव को समेटकर अपनी धर्मपत्नी अलखनंदा जी की प्रेरणा से एक साल की मेहनत के बाद( अपनी डायरी से) पुलिस का दर्द समझ कर एक किताब लिख डाली “वर्दी में इंसान”

अशोक जी ने ये सोचा होगा अगर मैं उस पुलिसकर्मी के दर्द को लिखूं जो पुलिस डिपार्टमेंट में सबसे निचले पायदान पर होकर भी अपनी ड्यूटी को ईमानदारी से बखूबी निभा रहा हो तो उसका और उसके परिवार का हौसला बढेगा और वह और जोश ईमानदारी के साथ आमजन की सेवा करेगा ! इस सोच को कर्मभूमी TV सलाम करता है
पर कोटद्वार पुलिस के कुछ कर्मचारी और अधिकारियों ने इसके कुछ ही पन्ने पड़े और बाकी को रद्दी समझ कर फाड़ते रहे या फिर अंग्रेजो को अपना माई-बाप मानकर अंग्रेजों की परंपरा निभाते हुए हुकूमत चलाने की कसम खाई ,ये वर्दी है सहाब ये चीज ही ऐसी है जो पहन लें तो बकरी भी पागल कुत्तों जैसी भाषा बोलने लगती है (ये बात कुछ M S नेगी जैसे पुलिसकर्मी को छोड़ कर सब पर लागू होती है ) वर्दी पहनते ही उसको कई बोतलों का नशा हो जाता है वो भूल जाता है मैं एक शरीफ पहाड़ी गांव में रहने वाला पहाड़ी हूँ ,मेरी पहचान सारी दुनिया मे शराफत और वफादारी में मानी जाती है लेकिन वर्दी पहनते ही चमोली जिले का पहाड़ी नस्ल का शरीफ आदमी पुलिस वाला बनते ही अपनी आवाज भारी कर अजीब -आवाजें निकालने लगता है “काँ को जा रिया” ,”के बात हो हो गई”, ” मंने बोल दिया थारे को”और न जाने कौन-कौन सी आवाजें कहाँ कहाँ से निकालने लगता है और लोगों पर रौब जमाने लगता है फिर पैसे कमाने के नशे में भूल जाता है कि वह किस फोजी या मास्टर का बेटा है जिसने सारी जिंदगी ईमानदारी से बीड़ी पी कर गुजार दी पर उस पुलिस वाले को काशीपुर में दुमंजिला घर बनाना है ,देहरादून में प्लाट खरीदना है अरे भाई शराबी पिक्चर का डायलॉग याद रख”पूत सपूत तो क्यों धन संचय, पूत कपूत तो क्यों धन संचय !

पुलिस अगर ईमानदार हो तो देश सही दिशा में जाता है और पुलिस बेईमान, अत्याचारी, माफिया और सामंती लोगों के साथ मिलकर अपराधियों को संरक्षण देती है तो नक्सलवाद,अलगाववाद और आतंगवाद का जन्म देती है जो देश और आमजान के लिए घातक होता है आने वाली नस्लों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है याद रखे देश से बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं हमारे लिए सिर्फ देश है जय हिंद
