पहाड़ में खेती किसानी को लेकर जो हिकारत भरा नजरिया है. इस अनिच्छा के चलते पहाड़ के बहुत बड़े बड़े खेत और सैरे भी जिस प्रकार बंजर हो गए ,पहाड़ों में बंदर और सूंवरो का राज हो गया , उस सब ने पहाड़ की खेती की स्थिति सूखे हैन्डपम्प जैसी कर दी , उसमें पानी निकालने की क्षमता तो है ।लेकिन उससे पहले उस सूखे पंप में एक दो बाल्टी पानी डालना ही होता है । ठीक ऐसे ही कोरोना के बाद ,पहाड़ में आए नवयुवक अगर 15 से 20% भी कोरोना के बाद यहीं रुक गए तो खेत , खलिहान फिर लहलहा उठेंगे बशर्ते सरकार को इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए न केवल बीज खाद और बाजार उपलब्ध कराना होगा बल्कि अनेकानेक लाभकारी योजनाओं के साथ नकद धनराशि भी देनी होगी . तब ही अच्छे दिनों की उम्मीद है . लेकिन कोरोना के बाद भी पहाड़ के बंजर खेतों को आबाद करना आसान न होगा . सिर्फ खेती ही एक उपाय नहीं है खेत के साथ पशुपालन और बागवानी को मिलाकर समेकित कृषि को बढ़ावा देना होगा . यह सब कैसे होगा इस सब के लिए एक विचार मेरे मन में आया तो मैंने उसे प्रदेश के कृषि एवं उद्यान मंत्री श्री सुबोध उनियाल जी से सांझा किया, हमारै कृषि मंत्री जी के साथ एक बड़ी अच्छाई यह है कि वह चीजों को जल्दी समझते हैं और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता भी रखते हैं .
कैसे पहाड़ में समेकित इंटीग्रेटेड एग्रीकल्चर को बढ़ावा दिया जाए इसके लिए निम्न प्रकार सुझाव प्रस्तावित है ।
“गांव में खेती किसानी,. पशुपालन बागवानी . का संयुक्त रूप से प्रयोग और प्रोत्साहन कर खेती को लाभकारी बनाया जा सकता है इसके लिए सरकार को पर्वतीय क्षेत्र के किसानों में स्वैच्छिक चकबंदी को बढ़ावा देते हुए .
” समेकित कृषि एवं ग्राम प्रेरक किसान “Integrated Agriculture and village pramoter award की योजना प्रारंभ करनी चाहिए, जिसके तहत बड़े गांव में दो व्यक्ति और छोटे गांव में एक किसान परिवार को तीन हजार रुपया मासिक प्रोत्साहन राशि देनी चाहिए .
पुरस्कार चयन के लिए निम्न मानक निर्धारित हों .
1- कृषक उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र का किसान हो ( नैनीताल का औखड़ कांडा बेतालघाट धारी ब्लॉक , देहरादून का चकराता ब्लॉक शामिल हो )
2- किसान न्यूनतम 25 नाली भूमि को आबाद कर नियमित फसल उगा रहा हो जिसका न्यूनतम 3 वर्ष फसल प्रमाणन हुआ हो,
3 प्रत्येक नाली दो फलदार वृक्ष अर्थात 25 नाली में कम से कम 50 फलदार पेड़, 25 मुर्गी पांच पशुधन गाय अथवा भैंस पालन हो. गाय भैंस ना हो तो 15 बकरी हो .
किसान द्वारा आजीविका उन्नयन हेतु इस प्रकार समेकित कृषि का सफल प्रयोग किया हो .
ऐसे किसान को” समेकित कृषि एवं ग्राम प्रेरक पुरस्कार के लिए चयनित किया जाए “
जनपद के कृषि अधिकारी नोडल अधिकारी हों.
बागवानी एवं पशुधन प्रमाणन का कार्य उद्यान तथा पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा किया जाए .
इस पुरस्कार के लिए चयनित किसान के घर माह में एक बार कृषि बागवानी और पशुधन पर तकनीक, बीज व अन्य सहायता उपलब्ध कराने के लिए तकनीकी विशेषज्ञ जुटें और ग्रामीणों को इस दिशा में सहायता दें .
“प्रेरक किसान” ग्रामीणों और अधिकारियों के बीच समन्वयक का कार्य भी करेगा.
“प्रेरक किसान ” का पुरस्कार 3 वर्ष के उपरांत परिवर्तित होगा
इस योजना की सफलता पर गांव में कृषि को प्रोत्साहन मिलेगा और रिवर्स पलायन की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा । फिर धीरे-धीरे रग्बी जैविक खेती के लिए प्रमाणिक होंगे पैसा आएगा तो बुद्धि खुलेगी…
उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में ऐसी कोई योजना उत्तराखंड में आएगी । और रिवर्स पलायन में सहायक होगी ।