मरने वाले को नहीं पता था की करोना वायरस जीवन की कड़वी सच्चाई को लेकर आएगा और लोगों को एक नई परिभाषा नई सोच देकर जाएगा जिस व्यक्ति ने जीवन भर अपनों के लिए जिया अपनी ख्वाहिशों को अपने दर्द को अपने दुख को दरकिनार कर सिर्फ परिवार बच्चों माता-पिता के लिए अपनी जिंदगी को निछावर कर दिया उसको नहीं पता था कि उसके संग अंतिम समय में कोई भी उसका साथ नहीं देगा यही जीवन की सच्चाई है शमशान तक तो लोगों को आपने देखा होगा लेकिन उसके बाद की यात्रा व्यक्ति को खुद ही करनी पड़ती है लेकिन कोटद्वार के इस वाकए ने सब को हिला कर रख दिया जब अंतिम यात्रा में कोई भी परिजन नहीं था यहां तक कि कोई पंडित और पुजारी भी नहीं था ना ही कोई मंत्र नहीं कोई उच्चारण ना कोई राम नाम सत्य की आवाज कहीं से आई धन्य है उत्तराखंड पुलिस के वह जवान डॉक्टर जिन्होंने मृतक व्यक्ति की अंत्येष्टि की, करोना वायरस ने समाज में इतनी दहशत फैला दी है कि लोग अपनों के अंतिम संस्कार में भी नहीं आ रहे मृतक संजय पटवाल गुडगांव से अपने घर जाने को निकला था उसको नहीं पता था कि यह उसकी अंतिम यात्रा होगी अस्थमा के मरीज संजय की मौत हुई तो यह भी कयास लगाई जा रही है किसकी अस्थमा से नहीं करोना से मौत हुई सवाल बहुत सारे हैं लेकिन मृतक संजय पटवाल को नहीं पता था कि जिन लोगों से वह इतना प्यार करता है जिन लोगों से मिलने के लिए उत्तराखंड अपने गांव के लिए लौटा वही लोग उसके मरने पर उसकी अंतिम यात्रा में भी शामिल नहीं होंगे यह मौत का भय या निजी स्वार्थ हम को नहीं पता लेकिन यही सत्य है गीता का लिखा हुआ एक एक वचन सत्य है अंतिम समय तक शमशान तक कोई भी छोड़ सकता है लेकिन उसके साथ आगे कोई नहीं जा सकता धन्य है उत्तराखंड पुलिस के वह जवान जिन्होंने संजय की अंत्येष्टि करी लेकिन दुखद यह रहा कि ना ही वहां मंत्र से ना ही पंडित सिर्फ उसका अंतिम संस्कार हुआ यही नियति थी यही सत्य सच को हमें स्वीकार नहीं पड़ेगा

आज कोटद्वार में एक चिता जलाई गई …बिना मन्त्रोच्चार के बिना लकड़ी देने वाले पुत्र पति या पिता भाई के बिना…..कोई राम नाम सत नही गाया गया नही किसी ने मुंडन किया मुक्ति धाम में…..किसी घर का बेटा या पति रहा था……
क्योंकि उसकी मोत एक क्वारेंटाइन सेंटर में हुई थी….सरकारी एम्बुलेंस के चालक द्वारा डेडबॉडी सुदूर पहाड़ से अकेले कोटद्वार पहुचाई गई….पुलिस पटवारी और डॉक्टर ने सारी फॉर्मेलिटी पूरी की….आज उस मृतात्मा को सत्य पता चला की पुलिस डॉक्टर सफाई कर्मचारी ही परिजन थे…..
ऋषि वाल्मीकि की वो कहानी याद आ गई की ….जो भी कमाया था उसके भागीदार खुद हो……नश्वर शरीर के भी नश्वर रिश्ते ….समझ नही आ रहा की इस कोरोना काल ने क्या समझाया…….की नोकरी किसके लिए करने गुड़गावँ गया था

