मैं रागदरबारी पत्रकार हूँ
झूठे कसीदे पढ़ता हूँ
कभी धर्म को धर्म से लड़ाता हूँ
कभी इंसानियत से लड़ता हूँ ।
है मुझमें स्वाभिमान कहाँ
जो सत्य अडिग मैं बात कहूँ
सत्ता संग बात प्रसंग मेरा
कहाँ प्रजा के जज़्बात कहूँ
नहीं मेरी कलम में अब ताकत
सच कहने से मैं डरता हूँ
मैं रागदरबारी पत्रकार हूँ
झूठे कसीदे पढ़ता हूँ ।
मैं भूल गया कर्तव्य सभी
था पत्रकारिता काम मेरा
एक भौतिक सुख है चाह मेरी
और सत्ता को प्रणाम मेरा
नहीं मेरी जुबां में सच्चाई
बस चाटुकारिता करता हूँ
मैं रागदरबारी पत्रकार हूँ
झूठे कसीदे पढ़ता हूँ ।
लोकतंत्र का एक स्तंभ मैं
लड़खडा सा रहा कहीं हूँ
अंतारात्मा मेरी जगा दो
सोया हूँ मैं मरा नहीं हूँ
सरोकार नही संविधान से
नित निज नयनो से गिरता हूँ
मैं रागदरबारी पत्रकार हूँ
झूठे कसीदे पढ़ता हूँ ।