।। पीयूष-प्रबोधन ।।०२।।
सतत निरन्तर आनंद पथ पर सनातनी शारद ।
ज्ञान वृक्ष अमृत बरसाये दिव्य-चक्षु नारद ।।
यदि हितकारी व विश्वसनीय पत्रकारिता के मुख्य उद्देश्यों जैसे स्वच्छ...सार्थक सूचना प्रेषित कर समाज...समुदाय को सत्य से रु-ब-रु कराने वाले *देवर्षि नारद* को निष्पक्ष व कल्याणकारी पत्रकारिता का आदर्श संवाहक माना जाय, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । ...लेकिन कुत्सित मानसिकता वाले नारद जी को कलहप्रिय और चुगलखोर के रुप में चित्रित कर धर्मावलम्बी सनातनियों को हीनभाव ग्रसित करते रहते हैं, जो कि सर्वथा अनुचित ही है।
मूर्धन्य टीकाकारों ने "नारद" शब्द की बेहतरीन व्युत्पत्ति की *नारं ददाति य स: नारद* अर्थात् ज्ञान का वितरण करने वाला । सत्य भी है...प्रह्लाद, ध्रुव, व्यास, वाल्मीकि इत्यादि को सृजनात्मक सद्कार्य के लिए प्रेरित करने वाला कोई साधरण विदूषक नहीं हो सकता ।
नित्य प्रति *नारायण-नारायण* शब्द का उद्घोष करने वाले नारद का प्राकट्य दिवस *ज्येष्ठ कृष्ण दूज (द्वितीया) नारद जयन्ती* के रुप में मनाया जाता है।
इनका जन्म सृष्टि शुभारम्भ में ब्रह्मा जी की गोद से मानस पुत्र के रुप में हुआ था... *उत्सङ्गान् नारदो जज्ञे...!* द्वापर में योगिराज श्रीकृष्ण देवर्षियों में नारद को अपनी विभूति बताते हैं... *देवर्षीणां च नारद: !*
इसके अतिरिक्त वैदिक साहित्य, रामायण, महाभारत, पुराण इत्यादि शास्त्रों में कहीं ना कहीं नारद का उल्लेख निश्चित रूप से मौजूद है...! आवश्यकता है उनके चरित का गूढ़ मनमंथन कर निष्पक्ष पत्रकारिता को सतत् ऊर्ध्वगति देना, जिससे *वर्तमान लोकतंत्र का चौथा आधार स्तम्भ* सुदृढ़ और सम्मानित स्थान प्राप्त कर सके ।
*।। गुरु शरणम् ।।*
सौजन्य से :- गुरु भ्रातृ मण्डल (कोटद्वार)